न तेरे है न मेरे हैं,
जो हम सब भुगत रहे,
वो तो वक्त के थपेड़े हैं ।
अपना अपना कर्म सब कर रहे,
चाहे वो अपने है या चचेरे हैं,
उसी का फल सब भुगत रहे,
जिसको कहते वक्त के थपेड़े हैं।
आजकल की दुनिया में कर रहे सब, एक दूजे पर प्रत्यक्ष या परोक्ष वार,
धीरे धीरे टूट रहे सब लोगों के सामूहिक परिवार।
नीचा दिखाने में हर कोई लगा हुआ है,
कर रहे प्रयोग अपने अचूक हथियार।
यहां कहीं नही दिखती चांदनी,
यहां तो सिर्फ अंधेरे ही अंधेरे है।
बस इसी का फल हम सब भुगत रहे,
कहते जिसको वक्त के थपेड़े हैं।
दूसरों को बदनाम करके सोचते,
जैसे मिल गए उनको लड्डू पेड़े हैं,
पर वो भी न भूलें, उनके कर्मों का भी हिसाब होगा वहां,
हर अच्छे बुरे का इंसाफ होगा वहां,
फिर वो भी बोलेंगे ,
अपने कर्मों का फल भगत रहे हम,
ये तेरे हैं न मेरे हैं,
सबके हिस्से आयेंगे ये,
कहते जिनको वक्त के थपेड़े हैं।
"जय" भी कहता सबको ,
करो कर्म तुम अपना अच्छा,
बुरा न करो ,बुरा न बोलो किसीको, ऊपरवाला सब देख रहा,
परिस्थितियां वो बना रहा उसी हिसाब से फिर,
और हम कहते ये तो वक्त के थपेड़े हैं,
ये तो वक्त के थपेड़े हैं।
स्वरचित एवम अप्रकाशित रचना
डॉक्टर जय महलवाल
ई ·०१ ,प्रोफेसर कॉलोनी
राजकीय महाविद्यालय बिलासपुर हिमाचल प्रदेश
पिन 174001
हेलो- 9418353461