मैं जब बोलूं भोले-भोले,
भोले हंसते हौले-हौले,
नयन नीचे चरणों में करके,
जोर से बोलूं भोले-भोले।
मैं जब बोलूं ...
एक कदम जब भोले चलते,
मोहन दूसरा पग धरते है,
दोनों की इस जुगलबंदी को,
श्रीराम निहारा करते हैं।
मैं जब बोलूं ....
भोले धर अपनी जिह्वा पर,
सुर का साज बजाता जा,
एकमेव तो भोले ही हैं,
हर धुन पर तू गाता जा।
मैं जब बोलूं ....
अगर-मगर के मोहपाश में,
बंधकर जीवन खो जाता है,
भोले की थोड़ी सीख जो ले लो,
तो जीवन तर जाता है।
मैं जब बोलूं ...
आओ भोले शब्दों में हम,
प्रेम की चकरी से रस घोलें,
अमर तत्व तो भोले ही हैं,
जोर से बोलें भोले-भोले।
मैं जब बोलूं ...(147 वां मनका)
कार्तिकेय कुमार त्रिपाठी 'राम'
गांधीनगर,इन्दौर,(म.प्र.)