रहना तुम सदा मेरे भीतर ऐसे
रहती है पुतलियाॅं चुपके से
नैन कटोरी के भीतर जैसे
ओझल न होना अचानक नज़रों से ऐसे
कुदरती विपदा में बिछड़ जाते है
अपने अपनों से जैसे।
सदा ऐसे थामें रखना मुझको
जैसे कृष्ण ने थामा था गोवर्धन को
बहा न देना ऐसे बहा देता है नीरनिधि
अपनी लहरों को जैसे।
संभालना मुझे ऐसे
पत्तें थामते है शबनम की बूॅंदों को जैसे
गिरा न देना अपनी नज़रों से कभी
पतझड़ के मौसम में गिरा देती है
टहनी सूखे पत्तों को जैसे।
महफ़ूज़ रखना अपनी आगोश में ऐसे
सीप संजोती है मोती को जैसे
दूर न कर देना ऐसे बादल आज़ाद कर देते हैं
बारिश को जैसे ।
खिलखिलाती रखना होंठों पर जैसे
लहलहाती फसल सी हॅंसी हो
बहा न देना ऐसे
ऑंखों से गिरते चार ऑंसू हो जैसे।
पढ़ना तुम मुझे ऐसे प्रेम ग्रंथ शिद्दत से
डूबकर कोई प्रेमी पढ़ता है जैसे
पढ़ कर फेंकना मत ऐसे
रद्दी को फेंकते हैं लोग कुड़ेदान में जैसे।
गुफ़्तगु की ज्योत सदा जलाए रखना ऐसे
सदियों से बहती गंगा का निनाद
हरकी पैड़ी के हर घाट से उठता है जैसे
कभी ऐसे मत रूठना रूठती है
शहीदों की भार्या से किस्मत जैसे।
अपनी ऑंखों से मेरी काया का
सदा श्रृंगार करना ऐसे कैनवास पर
सुंदरता कोई उकेरता हो जैसे
किसी दिन विरक्त मत बन जाना
जोगी जोग लेता है जैसे।
कभी छोड़ने का मन करें तो ऐसे छोड़ना
छोड़ दें साॅंसे तन से रिश्ता
और मेरी रूह को इसकी भनक तक न हो जैसे।
भावना ठाकर 'भावु' बेंगलोर