पहली बार जब लिखा
नहीं भूल सकी अब तक ,
और न ही
कभी भूल सकूंगी
उस पहले-पहल के पहलेपन को !!
वो बचकानी बातें..
अतार्किक प्रश्न..
और उनके एकतरफा निर्णय..
सभी कुछ वैसा का वैसा ही छपा हुआ है
मन की स्लेट पर
कुछ भी तो नहीं मिटा
अब तक !!
लेखन का ये सफ़र
कभी रुका..
कभी धीमा हुआ..
पर मन में "कुछ" तो था
जो चलता ही ही रहा
बग़ैर थमे !!
आज़
जब भी मुड़कर देखती हूं
"पिछले पन्नें"
सहसा विश्वास नहीं होता
कि क्या "लिखा" था
"उन दिनों"
जो यथार्थ बन
परिवर्तित हो रहा है
धीरे-धीरे
किसी आकार में !!
शायद महसूसा होगा
तुमने भी
कभी
ऐसा ही कोई अनुभव
कि मानों
"कहीं कुछ तो है"
शब्दों की इन लकीरों से परे भी
जिसपर किया जा सके विश्वास
आंखें मूंदकर !!
नमिता गुप्ता "मनसी"
मेरठ, उत्तर प्रदेश