जब तुम आना...!
ये सारे सामान लेकर आना !!
मुझे दहेज चाहिए...,
तीन चार ब्रीफकेस
तुम लेकर आना
जिसमें भरा हो...,
तुम्हारी बालापन की खिलौना
तुम्हारी बालापन की यादें...
आरंभ से अब तक
मैं तुम्हें पहचानना चाहता हूं...।
य सारे सामान लेकर आना !
जब तुम आना...!!
तुम लेकर आना
श्रृंगार की छोटी सी डिब्बी में
बंद करके अपनी
स्वर्ण जैसी स्वर्णिम आभा ।
अपनी चांदी जैसी मुस्कुराहट
आसमान छूने वाली
विलक्षण प्रतिभा ।।
अपनी हीरा जैसी ढृढ़ता
तुम लेकर आना अपने साथ
छोटी-बड़ी कई डिबिया
जिसमें बंद रहे...,
तुम्हारी अज्ञानता
तुम्हारी चुलबुले पन
तुम्हारी स्पष्टता
तुम्हारी दीवानगी पन
जब तुम आना...!
ये सारे सामान लेकर आना !!
क्रमश...
स्वरचित एवं मौलिक
मनोज शाह मानस
नारायण गांव,
नई दिल्ली 110028
manoj22shah@gmail.com