मैं नवल हर्षमय हो रही हूँ,
एक नवल वर्ष को लेकर,
बीते वर्षों ने खेली है
सुख-दुख की आँख मिचौली,
क्या नवल वर्ष लेकर आएगा?
मानवजन हृदय की शुद्धि,
क्या होंगे भ्रष्टाचार के आँकड़ें कम
घटेगी क्या दुष्कर्मों की होड़ी?
नवल वर्ष तो आता है,
फिर बीते वर्ष जैसा हो जाता है,
फिर क्यों मैं हर्षमय हो रही हूँ,
छोड़ो अब नवल वर्ष की झूठी डोरी।
- लवली आनंद
मुजफ्फरपुर, बिहार