दुल्हन सी नगरी सजी, आज अयोध्याधाम।
पाँच सदी वनवास से, लौटे हैं प्रभु राम॥
ले लें प्रभु श्रीराम से, सीख बहुत ही खास।
वंचित हो या हो दलित, उसे बिताएँ पास॥
हुआ देश अब राममय, चहुँदिशि जय-जयकार।
प्राणिमात्र से प्रेम ही, रामतत्व का सार॥
कहीं राम से प्यार है, कहीं राम पर वार।
रामराज्य की कल्पना, कब होगी साकार॥
नहीं पराया धन लखें, नहीं पराई नार।
प्राण-प्रतिष्ठा राम की, तब होगी साकार॥
राम कहें जो काल्पनिक, आकर देखें आज।
कोटि-कोटि उर में यहाँ, राम कर रहे राज॥
ताकत का या ज्ञान का, करना नहीं घमण्ड।
तय है मिलना राम से, इसी जन्म में दण्ड॥
कुछ उत्साही देखते, नेता में भगवान।
बनना है हर शख़्स को, बस सच्चा इंसान॥
मर्यादा मत त्यागिए, यह है राम चरित्र।
हर निषाद, सुग्रीव को, आज बनाएँ मित्र॥
राजपाट को छोड़ जो, स्वीकारे वनवास।
वही प्रजा के बीच अब, राजा होगा खास॥
आज गिलहरी की तरह, करें सेतु निर्माण।
तभी यहाँ हर कष्ट से, पा सकते हम त्राण॥
ओम वर्मा
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