काक का कर्णवेध कर्कश ध्वनि कर्ण टीस अब दे रहा आवाज।
पूछ रहा क्या आप सच में नारायण आम जन में भ्रम फैला रहा आज।।
अब दौड़ाओ तीनों लोकों में शरण कहां वह पाएगा।
आओ धनुष उठाओ राम जनता भ्रम से तो बच जायेगा ।।
एक स्वयंवर पुनः सजा है शिव धनुष में भार बहुत ।
कुटिलों की वो कुटील चाल धनुष उठाने का कोशिश रहा बहुत ।।
बूते एक के नहीं उठान शिव धनुष में बहुत हीं भार।
आओ धनुष उठाओ राम मानव जन मानेंगे आभार।।
एक बांध तुम फिर से बांधो बेसक करना पड़े अथक प्रयास ।
बंदर भालू पौज खड़ा कर कर दो खत्म अधमी का साम्राज्य।।
आश लगाई सैकड़ों अहिल्या अब इनके उद्धार की बात।
आओ धनुष उठाओ राम अब तड़का को ताड़ने की रात ।।
राम राज्य की पुनः जरूरत जय घोष की होगी गूंज धारा पर।
नर नारायण का भेद हटाकर जन जन में सौहार्द बढ़ाकर ।।
मंदिर के गर्भ गृह में बैठो जनमानस फिर
जपेंगे नाम। लेकिन ध्यान सभी पर रखो हाल कर दो तुम जन जन के काम।।
राम राज्य के लिए जरूरी चाहे पुनः छोड़ना पड़े अश्वमेघ का अश्व ।
इसी बहाने हो जाएगा दंभी अधमी अताताई का अंत।।
एक कहानी फिर से करेगी सुसज्जित पुराण के पन्नो को।
आओ धनुष उठाओ राम तोड़ो मानव के संसय को।।
कमलेश झा नगरपारा भागलपुर बिहार