गोंडा। जनपद में हरे भरे प्रतिबंधित पेड़ों की लगातार कटान जारी है। शायद ही कोई दिन हो जब जनपद क्षेत्र में कटान ना हो जो जन चर्चा का विषय बना है। ऐसे में गंभीर सवाल यह उठ रहा है कि क्या अवैध कटान की जानकारी स्थानीय वन दरोगाओ और वनरक्षकों को भी रहती है। यही नहीं कटान की सूचना देने पर सूचनार्थियो का डिटेल लकड़कट्टो को दे दिया जाता है।
फिर क्या लकड़कट्टो द्वारा सूचनादाताओ पर दबाव बनाया जाता है और जब सूचनादाता नहीं मानते तो संबंधित वन दरोगा और वनरक्षक लकड़कट्टो से कार्यवाही ना करने के नाम पर ठेका तक ले डालते हैं। फिर वन कर्मियों का खेल शुरू होता है और एक दो पर केस काटकर अथवा मामूली जुर्माना लगाकर पीठ थपथपा कर प्रभागीय वनाधिकारी सहित सूचनादाता को गुमराह कर दिया जाता है।
यही नहीं लकड़कट्टो के द्वारा काटे गए अवैध प्रतिबंधित पेड़ों के काष्ठों को सूचना के बाद भी उठवा दिया जाता है। हाल ही में जानकारी मिली कि वन क्षेत्र पंडरी कृपाल रेन्ज में लगातार 3 हरे भरे आम को लकड़कट्टो द्वारा धाराशाई कर काष्ठों को उठा ले गये,इतने पर भी लकड़कट्टो का मन नहीं भरा तो उसी के पास 7 पेंड़ और काटकर धाराशाई कर दिया गया।
जिसकी सूचना पर वन दरोगा मौके पर कटान से इन्कार कर रहे थे तो रेन्ज अधिकारी पंडरी कृपाल से शिकायत के बाद मौके पर गये तो कटान पर कार्यवाही के नाम पर केवल 7 पेड़ों की नाप कर लाये और यह जानकारी वन दरोगा ने छुपाये रखा और केवल दो पेंड़ को प्रतिबंधित बता कर केश काटने की बात कही। लेकिन लकड़कट्टो ने वन विभाग की पोल खोल दी और यही नहीं कटान के सम्बन्ध में पूर्व में ही जानकारी वन कर्मियों को देकर काटने की बात कही है।
तो वहीं वन कर्मियों द्वारा नाममात्र कार्यवाही कर लकड़कट्टो को बचाने की वकालत करते वन कर्मी नजर आते हैं तो मिलीभगत का गंभीर आरोप सत्य प्रतीत होता दिख रहा है। इस तरह के लगातार कटान से प्रभागीय वनाधिकारी के कार्यशैली पर भी सवाल उठता है कि कहीं न कहीं प्रभागीय वनाधिकारी गोंडा पंकज शुक्ला की पकड़ अपने विभाग पर नहीं है जो इस तरह से वन कर्मियों के मनबढ़ होने पर अंकुश लगा सके।