अभिभू परमहंस थे, शिष्य योग स्वामी हों।
जब भ्रम भय से घिरती, वे हिय पथ वाग्मी हों।
दक्षिण तट मंदिर में, शिष्य अश्म स्थित ध्यानित।
बहुजन देशी भूखे, अनपढ़ लख, हों विगलित।
'अनगिन जन-जनि रोते, कैसे हों तपभावित' ?
रामकृष्ण की वाणी, 'शिव' हृदि अभिरामी हों। टेक 1
काम कनक का त्यागी, महाध्यान हो भग्नित ।
रोटी सँग ऋत शिक्षा, पाकर हों जन हुलसित।
आध्यात्मिक विज्ञानी, युव सेना हो जागृत।
मैं गुरु पद पर झुकती, वे अंतर्जामी हों।टेक 2
मीरा भारती।