पानी तेरे कितने नाम,
जितना तरल-सरल तू
वैसे ही तेरे काम
नभ के मेघों से तू,
बारिश बनकर गिरता हैं ।
उड़ता है जब सागर से
भाप बनकर खिलता है ।
आकाश से जम कर गिरे
तो ओले तू बरसाता है ।
पुष्प पर ओस बनकर,
प्राची में मुस्काता है ।
बहता पानी सरिता सा,
इकट्ठा झील कहलाता हैं ।
मर्यादा में जीवन और,
अमर्यादा में प्रलय बन जाता हैं ।
आँख से निकला अश्रु,
तन से स्वेद बन जाता है ।
सबसे पवित्रम रूप तेरा,
चरणामृत कहलाता हैं ।
गरिमा राकेश 'गर्विता'
कोटा,राजस्थान।