चारु चन्द्र की चंचल किरणें,
विधु के बिम्ब को चूमे,
शशि प्रेयसी बन मुस्काई,
पावन प्रीत की महिमा गायी।
कोमल कौमुदी कलियों पर,
मोहिनी मरीचिका पुष्पों पर,
स्पर्श सिंचित सुरभित सुमन,
सस्मित सुरभित चंद्रिका भायी।
शिव शिवेश्वर जटा विराजमान,
प्रियवर शशि चंद्रिका अभिमान।
जग ज्योत्स्ना से सुशोभित,
पावन प्रीत हिय विद्यमान।
तारक तारतम्य अद्भुत अटूट,
चाँद-चाँदनी हुये अभिभूत,
देख दामिनी का रूप विद्युत,
चंद्रिका भयी है भीत द्रुत।
निशा नेह नीलाम्बर प्यारा,
चटक चंद्रिका रूप निराला,
दिन दिवाकर से न उसका नाता,
चाँदनी को बस चँदा भाता।
डॉ.रीमा सिन्हा
लखनऊ-उत्तर प्रदेश