आप न होते तो
हम होते जरूर,
मगर क्या कर पाते
किसी भी बात पर गुरूर,
जिंदा लाशों की ढेर में
एक लाश हम भी होते,
जिंदगी गुजर जाता
अपने होने पर रोते रोते,
जीवित होने पर घुटन होता,
खाने को सिर्फ जूठन होता,
रूखे भोजन संग गाली भी खाता,
शोषक को कहते भाग्य विधाता,
सहना पड़ता दिन भर अपमान,
नहीं मिल पाता कभी सम्मान,
ना पढ़ पाते ना गढ़ पाते,
अस्वच्छता संग ही सड़ जाते,
बिना ठौर रह जाते रोते,
गर आप न होते आप न होते,
क्या पढ़ पाते क्या लिख पाते,
चार अक्षर क्या हम सीख पाते,
पाबंद होकर मनु विधान के
सूट बूट में क्या दिख पाते,
क्या होती तब अपनी इज्जत,
सहते रहते कितने जिल्लत,
नहीं कभी भी सर उठाते,
उनसे कैसे हम नजर मिलाते,
आप न होते गर मेरे मालिक
संविधान हम कैसे पाते,
समता और बंधुत्व नाम की
माला हम कैसे पिरोते,
गर आप न होते आप न होते।
राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ छग