वैभवलक्ष्मी

मां लक्ष्मी को धन-वैभव की देवी कहा जाता है।

देवी लक्ष्मी के कई रूप मां लक्ष्मी, धन लक्ष्‍मी, वैभव लक्ष्‍मी,  गजलक्ष्‍मी तो  संतान लक्ष्‍मी के रूप में पूजा जाता हैं।

मां लक्ष्मी का आशीर्वाद पाने के लिए व्यक्ति अपने मनोरथ के अनुसार देवी की आराधना करता है।

धन की अधिष्ठात्री देवी को प्रसन्न करने के लिए वैभव लक्ष्मी का व्रत करना उत्तम फलदायी माना गया है।

जिस घर में वैभव लक्ष्मी की पूजा होती है वहां सुख-संपत्ति का वास होता है।

घर धन-धान्य से भर जाता है।

सुबह स्नान कर साफ, धुले वस्त्र पहनें और व्रत का संकल्प लें. लाल या सफेद रंग के कपड़े पहनना अच्छा होता हैं।

चौकी पर लाल कपड़ा मां लक्ष्मी की प्रतिमा या मूर्ति और श्रीयंत्र स्थापित करते हैं।

वैभव लक्ष्‍मी की तस्‍वीर के सामने मुट्ठी भर चावल का ढेर लगाते। और उस पर जल से भरा हुआ तांबे का कलश स्‍थापित करते हैं।

कलश के ऊपर एक कटोरी में चांदी के सिक्के या कोई सोने-चांदी का आभूषण रखें जाते।

रोली, मौली, सिंदूर, फूल,चावल की खीर आदि मां लक्ष्मी अर्पित करते हैं।.

पूजा के बाद वैभव लक्ष्मी कथा का पाठ किया जाता हैं।

वैभव लक्ष्मी मंत्र का यथाशक्ति जाप,अंत में देवी लक्ष्मी की आरती होती हैं।

शाम को पूजा के बाद अन्न ग्रहण कर सकते हैं।

व्रत का पारण मां लक्ष्मी की प्रसाद में चढ़ाई खीर से किया जाता हैं।

इस दिन खट्‌टी चीजें नहीं बनानी चाहिए। ना ही खट्‌टी चीजें खानी चाहिए।

इसी तरह नियम से विधि विधान से पूजा संपन्न होती हैं।

धन की अधिष्ठात्री देवी को प्रसन्न किया जाता हैं।

स्वरचित मौलिक

सुजाता चौधरी

इंदौर मध्यप्रदेश।