अखंड निद्रा क्यों?

मनु आज भी खेल रहा

हमारे अपने दिमाग से,

लौ की रौशनी छुपा रहा

जलते हुए चिराग से,

दुख इसलिए क्योंकि ये

संवैधानिक समय है,

दिखावे से दूर नहीं हो पा रहे

किसने डाला वलय है,

जिसे हम मानते हैं निरर्थक कांड

वो छाया है ग्रह  की घेरे सा,

जिसे नष्ट हो जाना था वो

विद्यमान प्रकाश के बीच अंधेरे सा,

कैसे छटपटाओगे,

किसकी शरण में जाओगे,

वो मरा हुआ मिथक भी हमें घेरा है,

सूर्य रखकर भी हमारे पास

क्यों घनघोर अंधेरा है,

क्या हमें अंधेरों से प्यार है,

या फिर हम आदत से लाचार हैं,

रवि के औलाद होकर कम से कम

तारों सा चमकना था,

पाखंड देख सुन

दस कदम दूर ठिठकना था,

फिर क्यों ओढ़े हैं अंधेरा,

कब आएगा संवैधानिक सवेरा,

हमें सोचना होगा मनु नहीं

उनके स्वार्थी चमचों से

सावधान रहने की जरूरत है,

उसे छोड़कर तो देखिए

दुनिया कितनी ज्यादा खूबसूरत है,

स्वार्थी कौम के लोग स्वार्थी ही होते हैं,

कमजोरी हमारी भी है

हम जागकर भी

अखंड निद्रा में सोते हैं,

शांत रहने की प्रक्रिया कब त्यागोगे,

कब तक शोषकों के पीछे

अंधों की तरह आंख मूंद भागोगे।

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ छग