शीत ऋतु

सूर्य देर से आते हैं,जल्दी नभ से जाते हैं ,बदल गया मौसम,ये बात हमे समझाते।।

ठंडी ठंडी सी रातें हैं,ओस की बरसाते हैं ,भोर कोहरे से ढ़का,ये पथ उलझाते।।


सर्द हवाए से ठिठुरन होती आलस तन पे छाया,कुछ काम न हो पाया, ताने ओढ़ रजाई को,गीत गुनगुनाते।।

हाथों में लिए सलाई,स्वेटर खूब बनाई,यूँ धूप में बैठे-बैठे, सखि से होती बातें।।


खिलें गुलाब के फूल,कहीं न उड़ती धूल,सर्द हवा का मौसम,सदा ध्यान दीजिए ।।

पीते चाय कॉफी सूप,निकलती कम धूप ,कहीं होती बर्फबारी ,

आनंद ले लीजिए।।


धुंध को आया है इन्दौर,नगर हुये खामोश,सर्द के सभी आगोश,मौसम का कोप है।।

शीत मारती है तीर,बढ़ रही नित पीर,ठंड बढ़ाता है नीर,शीत का प्रकोप है।।


बाजरे मक्के की रोटी,स्वाद भरी मोटी मोटी,गुड़ संग खाए छोटी, भाजी संग खाइए।।

गर्म नर्म धूप शीत,ऋतु स्वास्थ्य सच्चा मीत,चाय अदरक की रीत,सबको चाय गर्मा गर्म पिलाइए।।


चमकती ओस बूंदें, मन को बहुत भाएं,सफेद चादर देख,मैदान से भागते।।

खेत हार घूम रहे, फसल संभाल रहे,नंगे पांव वसुधा में,अलाव में तापते।।


शरद सुहावन ये, ऋतु मनभावन ये भोर ये सुहावनी है,ओस  झिलमिलाए।।

डाली - पाती झूम रही, ओस बूॅंद गिर रही, 

सतरंगी आभा लिए, वसुधा महकाए।।


संतरा आंवला आए,सेव अमरूद लाए,विटामिन-सी के लिए,नींबू पानी पीते हैं।।

धुंध चहुँ ओर छायी, बहे शीत पुरवाई, फूल-फूल भौर चूमे,बाग वन मुस्कुराती है।।


स्वरचित मौलिक

सुजाता चौधरी

इन्दौर मध्य प्रदेश।।