मंगलमय हो जीवन सबका

बैर भाव सब दोष मिटाकर, खुशियाँ मिलती सारी |

मंगलमय  हो जीवन  सबका, चहुँ गूँजे  किलकारी ||

ज्यों चींटी चढ़ती जाती है, साहस सम मन भर लो |

चढ़कर  उतरे है  फिर वैसे, ऐसा श्रम  सब कर लो ||

श्रम  का फल  मीठा होता है, कहते  संत मुरारी ||

मंगलमय हो जीवन सबका,चहुँ गूँजे किलकारी ||


इकदूजे कोदेख न पाएँ,पर मिलकर देखे जगसारा |

निज रहते  सदा किनारों पर, तट  पर बहती  धारा ||

तट  नैनों सम तुम मन धारो, कर लो प्रीति निराली |

मंगलमय हो  जीवन  सबका, चहुँ  गूँजे किलकारी ||


अंतस  सबके  ईश्वर  बसता ,अंतस  चक्षु  निहारो |

सजल प्रकति बसती कोमलता,जनमन समतावारो ||

प्रेम प्रफुल्लित प्रतिफल पूरा,स्वप्निल सहमति सारी |

मंगलमय  हो  जीवन सबका, चहुँ  गूँजे किलकारी ||

कवयित्री 

कल्पना भदौरिया "स्वप्निल "

लखनऊ

उत्तरप्रदेश