चुनावी दिनों में पत्रकार माइक लिए लोगों के मुँह में घुसे रहते हैं। लोग हैं कि सरकार से रूठे रहते हैं। पाँचवां सवाल आया कि नहीं जनता बहू और सरकार सास बनी एक-दूसरे से मुंह फुलाए रहती हैं। जनता सरकार से जवाब की तलाश में अपनी जरूरतों को सवालों के रूप में लिए आँखें बिछाए रहती है। ऐसे में कोई पत्रकार सवाल पूछ ले तब तो इनका माथा और ठनक जाता है। आजकल टी.वी. स्टूडियो में भौंकने भर से टीआरपी बढ़ाने वाले लोगों के बीच आ जाएँ तो इससे बढ़िया बात और क्या हो सकती है।
ऐसे ही दिनों में एक बार एक पत्रकार ने चुनावी नब्ज और रुझान टटोलने के लिए एक बंदे से सवाल करने लगा – मान लीजिए यदि दो दलों के दोनों कैंडिडेट रुपए देते हैं, तो आप किसे वोट देंगे?
इस पर बंदे ने मुस्कुराकर कहा - कमाल करते हो। यह भी कोई पूछने वाली बात है। जो सबसे ज्यादा देगा मैं उसी को वोट दूँगा।
पत्रकार ने एक और सवाल किया – मान लीजिए दो के बदले तीन कैंडिडेट खड़े हों तब किसे वोट दोगे?
इस पर बंदे ने मुस्कुराकर कहा - बहुत सिंपल है। भाई जो ज्यादा देगा मैं उसी को वोट दूँगा।
पत्रकार ने इस बार चालाकी भरा सवाल किया – मान लीजिए दस कैंडिडेट खड़े हैं। सभी एक समान राशि देता है, तब आप क्या करेंगे?
बंदे ने हल्के से पत्रकार के कान में कहा - कोई बेवकूफ ही होगा जो वोट देने के बारे में सोचेगा। इतना पैसा मिलने पर मैं तो सैर सपाटे पर निकल जाऊँगा।
पत्रकार की हँसी छूट रही थी। जैसे-तैसे उसने खुद को संभाला। उसने पूछा – बिना वोट दिए यह कैसे संभव है?
बंदे ने कहा - पिछले कई चुनावों से मैंने वोट नहीं दिया। फिर भी मेरा वोट कोई न कोई डाल ही देता है। इस तरह सैर सपाटा और वोट दोनों हो जाता है।
पत्रकार ने अंतिम सवाल पूछा – क्या ऐसा करने से आपको कभी नहीं लगा कि आपका वोट गलत कैंडिडेट को पड़ गया?
बंदे ने कहा - वोट इसे मिले या उसे क्या फर्क पड़ता है। कोई नागनाथ है तो कोई साँपनाथ।
इतना कहते हुए वह जोर-जोर से हँसने लगा।
डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’, चरवाणीः 7386578657