दीपावली की झालरें

टिम-टिम करती 

रंग-बिरंगी झिलमिलाती हुईं दीपावली की झालरें ,

बतियाती रही रात भर

दो सहेलियों की तरह !!


कभी हंसतीं-खिलखिलाती..

कभी याद करती..वो दिन पुराने 

वो मौज-मस्ती..

वो काॅलेज के दिन ,

और फिर..

.............. !!


कभी चुप-चुप

पोंछती आंसुओं को

एक-दूसरे के ,

दर्द..कुछ किस्से..

कुछ तेरे.. कुछ मेरे.. !!


शोर पटखों का भी अवाक् रहा..

"सहेलियां हमेशा बहुत बातूनी ही होतीं हैं"..

समझ से परे रही यह बात उनके लिए

अब तलक !!


नमिता गुप्ता "मनसी"