क्या हो, क्या नहीं,
यह एक विचारणीय प्रश्न है?
समझने में देर-सवेर,
नहीं मिलता कोई सही सही,
उत्तर का दर्शन है,
सबमें बस अपने स्वार्थ में डूबे रहने का,
दिखता प्रदर्शन है।
सम्बन्धों में निकटता लाने में,
प्रयास और प्रयोग नहीं किए जाते हैं,
स्वार्थ और निन्दा करते हुए,
लोग दिन बिताने में विश्वास करते नज़र आते हैं,
खुशियां और सुकून देने वाली ताकत,
कमजोर पड़ रहा है,
स्वार्थ और निन्दा आज़ शिखर पर पहुंच गया है।
रिश्ते नाते खत्म का अब कोई मोल नहीं है,
धन और ऐश्वर्य को,
सम्मान और इज्ज़त दिलाने का,
सबसे बड़ा प्रमाण मिल रहा है,
मित्रता और सम्बन्धों में निकटता,
एक इतिहास बन गया है,
उदाहरण स्वरुप कुछ नहीं,
अब यहां नहीं मिल रहा है।
बस आज़ एक ही दौर है,
शान्ति और आनन्द नहीं,
बस पैसों के लिए घुड़दौड़ है।
आओ हम-सब मिलकर यहां,
एक नवीन बस्ती बसाएं।
खुशियां और सुकून देने वाली ताकत बनकर,
जनजन तक सुखद सन्देश फैलाए।
डॉ० अशोक, पटना,बिहार।