शब्द शब्द में प्रेम बसा है,तुम शब्दों की माला
चाहे सोम पिला दे मुझको या पिला दे हाला
जोगिया तेरे प्यार की मैं मधुशाला...
अंबर की आँखों में देखो धरा का रूप समाया,
मिलने को होकर विकल वो मधु बूँद बरसाया,
चिर विरह और क्षणिक मिलन में अद्भुत सुख वो पाया,
खोना पाना नाम नहीं होता है प्रीत निराला,
जोगिया तेरे प्यार की मैं मधुशाला...
मीठी मीठी नदिया भी तो सागर में समाती,
निज प्रीत पाने की ख़ातिर वो खारी हो जाती,
शिलाखंड के चोटों से भी तनिक नहीं घबराती,
मीत के प्रीत में पी जाती है हर दुःख का वो प्याला,
जोगिया तेरे प्यार की मैं मधुशाला...
डॉ. रीमा सिन्हा (लखनऊ )