दर्द ही दर्द दे दिये तूने
बहुत मुश्किलों में ज़िन्दगी हो गई
तु तो जहां से हंसते हंसते हो गया जुदा
हमें तो गमों का समंदर दे गया तू
तू था तो जिन्दगी बहुत खुशहाल थी
चारों और बहारों का सावन
रिमझिम बरसात थी
पर अब तो पतझड़ वीरान हो गया यह जीवन
हवा भी जहरीली हो गई तेरे ना रहने से
गमहीन में हूं
पर क्या करूं जीवन के सबरंग को देखना ही जिन्दगी है
दुखों के बाद सुखों की बहार अब कब आयेगी
क्या बताऊं मैं
दर्द ही दर्द दिये तुने
बहुत मुश्किलों में ज़िन्दगी हो गई।।
प्रेषक - लेखक हरिहरसिंह चौहान
जबरी बाग नसिया इन्दौर मध्यप्रदेश 452001
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