विह्वल व्यथित दृष्टि ये मेरी,
देखे पथ को निहार,
बार बार ध्वनि सुन वाहन की,
जब दिखती परछाई,
हृदय कहे करके स्पंदन तब ,
तुम ठहरो!मैं आई,
निर्जन पथ ये देख नयन भी,
आकुल फिर एक बार।।
छिपा भावनाओं को कितनी,
मौन सदा ही रहती,
बिना नीर के मीन बनी मैं,
आतप हर क्षण सहती,
अंग–अंग में प्रलय समेटे,
विछिन्न सकल श्रृंगार।।
मिलने को व्याकुल सदैव ही ,
देखूंँ प्रतिपल सपना,
बिना तुम्हारे है क्या कोई,
यहांँ जगत में अपना,
समक्ष मेरे आ जाओ तो,
आंँसू दें पथ पखार।।
अब तुमको आना ही होगा,
विरह वेदना न सहूंँ,
मिली देह ये क्षणभंगुर है,
अगले पल मैं न रहूंँ,
मन भर देखूँ तुम्हें प्रिये फिर,
कर दूँ सर्वस्व वार।।
रचनाकार
प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़
Priyadewangan1997@gmail.com