यह एक दुखद अहसास है,
नहीं होता विश्वास है,
ज़िन्दगी में कुछ भी सम्भव है,
यह दुर्घटना में मौत हो,
निश्चित रूप से यह हो जाता है
नहीं रहता असम्भव है।
मौतें हुई तो घर की खुशियां और सुकून गया,
घर की लक्ष्मी और उतराधिकारियों का,
सब अपने का ख़ून गया।
नहीं रहा एक सुखद प्रवास का,
खुशियां और सुकून देने वाली ताकत यहां,
गुलजार रहीं ज़िन्दगी में,
बस ग़म और तकलीफ़ की,
वादियों आ दुखद संसार रहा।
यहां बस एक उम्मीद है,
यादों की आकृति में,
सबकुछ अब क़ैद है।
यह तकलीफ़ नहीं ग़म का समन्दर है,
सबकुछ यहां बस अंधेरे में,
उठती हुई दुखदाई मंजर है।
क्या सोचा था, क्या हुआ,
नजदीकी सम्बन्धों में पिरोने वाले,
अब नहीं रहें हैं जहां में,
सिसकियां ले रही है घर-घर में,
आफताब नहीं है अब इस जहां में।
यादों की आकृति अब शेष है,
यही अब घर वालों के लिए विशेष है।
डॉ ० अशोक,पटना,बिहार।