"हमारी हिंदी" एक चिड़िया की तरह थी
दिनभर चहकती थी
बिना किसी भय और संशय के ,
वो जहां भी जाती रही
सब शामिल हो गये
उसकी "भाषा" में ,
उसने हवाओं को स्वर दिए..
हवाओं ने पत्तों को हिलाया..
पत्तों ने जोर से आवाज लगाई
बादल बरसे..
धरती हो गई हरी !!
बहुत सारी चीज़ें सिर्फ देखी ही जाती रहीं
भाषा ने उसे "नाम" दिए ,
जिनके सिर्फ नाम पता थे
उनको "आकार" दिए ,
और..
सभी आकार घुलते गये
भाषा में बिल्कुल पानी की तरह
एकदम पारदर्शी से !!
सुनों..
विलुप्त मत होने देना इसे गोरैय्या की तरह
कि खोजना भी मुश्किल हो जाए !!
नमिता गुप्ता "मनसी"
उत्तर प्रदेश, मेरठ