हां, नहीं हूं मैं "उस" जैसा सूरज मगर
बुझते दियों को भी रोशनी देता हूं मैं !!
नहीं फ़र्क पड़ता कि "कल" कैसा रहा
ज्ञान देकर "भविष्य" बदल देता हूं मैं !!
छिपे रहे अब तक जो घने अंधकार में
चुप रही आवाज़ों को "शब्द" देता हूं मैं !!
आज मुझसे मेरे मजहबों बात न करना
किताबों को ही भगवान् बना लेता हूं मैं !!
समझेगा यहां कौन शिक्षक के "दर्द" को
अर्जुनों की क्लास में एकलव्य गढ़ देता हूं मैं !!
नमिता गुप्ता "मनसी"
मेरठ , उत्तर प्रदेश