आवत हें मोर पितर मन, पन्द्रह दिन ताते-तात खवाहूँ।
ओरिया के ओरी-ओर, चाउर पिसान के चउक पुरहूँ।।
चिरई, मंदार, अउ कोहड़ा के फूल ल ओरियाए हौंव।
गोरसी के आगी म भात, गुर अउ घीव के हुम देहौंव।।
बबा, ददा, बेटा, भाई मन खतम होए हें ओही दिन आहैं।
नानकन बिते लइका मन सोरियावत पंचमी के दिन आहैं।।
दाई, माई, बेटी, बहनी पितर मन नवमी के दिन आहीं।
गुरहा चीला, उरीद बरा, भात अउ साग के जेवन जेहीं।।
बाल्टी म हुम ल धरके तरिया अउ नंदिया म लेके सराहूँ।
घठौंधा म खाए बर रखके, गाड़ी चघे बर पइसा जोरहूँ।।
चउदा दिन घर म रहिथें, पन्द्रह दिन म पितर बिदा होही।
अपन पितर ल भेजत, कलप-कलप के माई पिला रोहीं।।
कवि- अशोक कुमार यादव मुंगेली, छत्तीसगढ़
जिलाध्यक्ष राष्ट्रीय कवि संगम इकाई।