भाद्रपद की पूर्णिमा,
तिथि बहुत ही पावन।
प्रारंभ होता पितृपक्ष,
अवसर है मनभावन।।
सोलह दिन की अवधि है यह,
नाम महालय पक्ष।
पूर्वजों का सुमिरन कर बनते,
संस्कारों में दक्ष।।
कुशगुच्छ हाथ में लेकर अपने,
करते हैं जल का तर्पण।
यथायोग्य पकवान बनाकर,
पितरों को करते अर्पण।।
जिस तिथि में हुआ था जिनका,
स्वर्गलोक प्रस्थान।
पितृपक्ष की नियत तिथि में,
होता उनका आह्वान।।
नवमी तिथि का दिन जब आता,
बन जाता यह खास।
पूर्वज माताएं आती हैं,
मिले दिव्य आभास।।
धूप जलाकर, दीप दिखाकर,
करते इनका सम्मान।
आशीर्वाद सतत ही बरसे,
मांगते यह वरदान।।
इस दुनिया में जिनके कारण,
है आज अस्तित्व हमारा।
उनके प्रति कृतज्ञ भावना,
है परम कर्तव्य ये प्यारा।।
इनकी दी हुई सीख व दीक्षा,
हमको सन्मार्ग दिखाती है।
अलौकिक जिनकी उपस्थिति ही,
संकट से सदा बचाती है।।
हे परमपूज्य! हे पितृदेवता!
स्नेह सदा बरसाते रहना।
गलती हमसे हो जाए तो भी,
दया भाव दिखलाते रहना।।
इस पुण्य घड़ी में हों नतमस्तक,
करें पितरों का गुणगान।
न हो धृष्टता, न हो उपेक्षा,
करें पूजन बनकर 'नादान'।।
रचनाकार
तुषार शर्मा "नादान"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़
tusharsharmanadan@gmail.com