आ जाओ मेरे जीवन में फिर से,
कर रहीं हूँ प्रतीक्षा बहुत समय से।
टूटी थी पहले मन से ,
शनै:-शनै: अब झर रहीं तन से।
जुड़ी थी जब जीवन में तुमसे,
अल्प वय थी नहीं समझती थी,
इस मधुरतम संबंध की गहराई।
बढ़ती वय के साथ-साथ,
अंत:मन की गहराई तक जुड़ पाई।
सात जन्मों के सम्बंधों के अग्नि फेरे,
सप्तपदी के वादों से,
आकंठ प्रेम गंगा में नहाई।
वंशावली में रोपे दो बिरवे मैंने,
अपने नारित्व को मातृत्व में जी लिया मैंने।
जीवन मार्ग को अधूरा तय कर तुमने,
कह दिया अलविदा मुझे।
काल रात्रि से अब तक निभा रही हर वादा,
बेटी के कर पीले हाथ उसे किया विदा।
ला कर सुशील बहु बेटे का घर बसा दिया,
अनेकों ऋतुओं को अकेले ही मेंने झेल लिया।
बसऔर नहीं थक गई हूं कर्तव्य निभाते ,
मन तन से बिखर रहीं हूं अपने को सम्भालते।
हारुंगी तो नहीं पर थक गई हूँ मन से,
कर रहीं हूं प्रतीक्षा अब मिलने की तुमसे।
बेला विरदी
1382, सेक्टर-18,
जगाधरी-हरियाणा
8295863204