हे! गणपति,गजानन,गौरीसुत। चंद्रशेखर के लाडले सपूत।।
वंदना करूं चंद्ररात,सूर्योदय। डूबे भाग्य का करो पुनरोदय।।
प्रथम पूज्यनीय मंगल दाता। ज्ञान और कौशल के विधाता।।
रिद्धि और सिद्धि के वल्लभ। मूढ़ मनुज को दर्शन दुर्लभ।।
नवीन अन्वेषी धन समृद्धि। सफलता के देवता देते बुद्धि।।
करते दूर जीवन के बाधा। करते हो परिपूर्ण न देते आधा।।
सुख और शांति शुभकर्ता। दुःख और गर्व नष्ट सुखकर्ता।।
गणेश लोक करते निवास। पुकारे कोई पतित आते पास।।
ओम वक्रतुंडाय विख्यात मंत्र। प्रगट हो जाते यत्र-तत्र यंत्र।।
त्रिशूल,तलवार और अंकुश। अस्त्र मोदक,परसु,और पाश।।
स्वास्तिक और मोदक प्रतीक। मुशक सवारी वृहद प्रतीत।।
शुभ और लाभ अद्भुत तनुज। संतुष्टि की देवी सुता अनूप।।
गणेश,शिव और मुद्गल पुराण। कथा श्रवण करते शास्त्राण।।
मस्तक,उदर,सूंड नाम प्रवण। चतुर्थ भुजाएं सदिक प्रमाण।।
चराचर सृष्टि उदर विचरण।ग्राह्यशक्ति,अणुदृष्टि महाबुद्धण।।
रक्त,मैल उद्भज गणनायक। आज्ञा पालक, सगुण लायक।।
अर्पणा अंबा वचन अनुगामी। दयालु अति पावन स्वामी।।
रक्तभ कुसुम,शमी पत्र प्रिय। नीर तत्व अधिपति सक्रिय।।
बारह नाम जपुं विद्यारम्भ। मंगल परिणय सूत्र अक्षरारंभ।।
गणेश चतुर्थी पावन त्यौहार। धूमधाम स्वर्ग पुरी उजियार।।
कवि- अशोक कुमार यादव मुंगेली, छत्तीसगढ़।