नींदों की पलकों पर ठहरा स्पर्श तुम्हारा ये चुपचाप,
झंकृत कर जाते हो अंतस को, जैसे बूंदों में सैलाब !!
जब भी आंचल फैलाती हूं, झर-झर तारे इतराते हैं,
चुन लेती हूं आखें मूंदकर, करती नहीं कोई सवाल !!
जब मन तुमको दोहराए, "सच" बनकर आ जाना तुम
बिखरे हैं हालात ये मन के, रुक जाना बनकर ठहराव !!
जी लूंगी पल-पल तेरा, आ जाना..बस आ जाना तुम,
स्मृतियों में रहो हमेशा, तुम अंतस में..तुमसे हर सांस !!
नमिता गुप्ता "मनसी"
मेरठ, उत्तर प्रदेश