वो चीख रही थी
वो चिल्ला रही थी
रो, रोकर जोर से
भागती जा रही थी।
माँ बचा लों......
बापू बचा लों......
भैया बचा लों.....
कोई तो आओं
अरे.... कोई तो आओं रे....
उसकी चीखें
चिल्लाहट
और रुदन
सुनसान सड़क को चीरते,
अंधेरे में खो रहे थे।
पर
आकाश, तारें, चाँद
सब चुप थे।
और चुप था भगवान।
गूँज रही थी तो बस
दर्दनाक चीखें
जो सन्नाटे को चीरती,
सन्नाटे में खो रही थी।
कोई नहीं आया
बस दूसरे दिन,
अखबार के मुख्य पृष्ठ पर
एक खबर बड़े अक्षरों में छपी थी।
एक दरिंदे ने छः साल की
मासूम को मसल झाड़ियों में फेंक दिया।
फिर क्या........
जिसके लिए एक दिन पहले
कोई नही आया था।
उसके लिए लोग सड़कों पर थे।
मोमबत्ती जला रहे थे,
धरना दे रहे थे।
जुलूस निकाल रहे थे ,
कभी
शहर बंद कर रहे थे।
और वो कली
अस्पताल में
जिंदगी और मौत से
लड़ रही थी.....
गरिमा राकेश गौतम
कोटा राजस्थान