मैं एक औरत हूं,
जन्म से मरण तक
किसी के साथ चली हूं।
हर समय बंदिशों में पली हूं।
अनंत आकाश में उड़ना चाहूं।
नील गगन को छूना चाहूंँ,
इच्छाएं मेरी है अनंत,
पूरी उनको करना चाहूं।
वक्त वक्त पर लोग रोकते,
सामाजिक बंधन से टोकते।
रूढ़ियों में फिर हमें बांधते,
तरह-तरह के बंधन लगाते ।
हम जब कुछ भी मन की करते,
कदम कदम पर हमें देखते ।
इज्जत की दुहाई देते ,
हमारी कुछ ना सुनना चाहते ।
बातें अपनी हम पर थोपते,
हमें इंसान बिल्कुल ना समझते ।
पहनावे से दिक्कत उनको,
सूट साड़ी या जींस शर्ट।
तन तो वह पूरा ढकते हैं,
अभद्र व्यवहार लोग करते हैं।
करते हम तो सबकी इज्जत,
फिर भी मनमाफिक ना जीते।
पुरुषों के लिए अलग नियम,
महिलाओं के लिए है कहांँ
स्वछंद से तुम घूमते।
हम पर तुम बंधन हो कसते,
थोड़ी सी आजादी दे दो।
इच्छा पूरी हमको करने दो।
मेहनत पूरी हम भी करते,
साथ तुम्हारा सदा है देते।
थोड़ा सा तुम साथ निभा दो,
उड़ने की हमें राह दिखा दो।
हम तो जीते औरों के लिए,
बस थोड़ा सा अपना बना दो।
प्यार के मीठे बोल बोल दो,
थोड़ी हमारी कद्र कर दो।
रचनाकार ✍️
मधु अरोरा