चुनाव

चार पैर की कुर्सी को

आपस में लड़ रहे

न कोई इज़हार कर रहा

न कोई इंकार कर रहा

स्वीकार की बात ही अलग

हर उम्मीद में जीत है

कोई नींद से उठ आया

तो कोई ईद का चांद निकल आया

आज मौसम बड़ा उदास है

चार पैर की कुर्सी पर

कोई अपना नहीं है,

कोई 500का नोट ले जय -जय कर कर रहा

कोई तो सिर्फ दारू या गुटका में खुश है।

जनता से किया वादा किसी को याद नहीं

सिर्फ़ चार पैर की कुर्सी को

आपने खपरे भी बेच दीये

वाह मेरे नेता क्या कमाल कर दिए

प्रतिभा जैन

टीकमगढ़ मध्यप्रदेश