नूतन वर्ष का समारंभ।
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही,
नव-चेतना उदित अरुणाभ।
मानव-अस्मिता महापर्व,
लाता तम से आत्म-प्रकाश।
ज्ञान व भक्ति पथ से स्पर्श
मानव-धर्म,सद्गुण-आकाश।
सृष्टि का प्रथम अरुणोदय,
जीवन उत्पत्ति संग ही यज्ञ,
आरम्भ होता, सेवा-वैराग्य
का,खोले जो मोक्ष-रहस्य।
गुड़ीपर्व है, आस्था-विश्वास,
के नव-ज्ञान का विजयोत्सव,
प्रभु राम के दिव्य अभिषेक
से समझें, चित्त-शुद्धि महत्व।
अन्तः,बाह्य की शुद्धता में
सत्कर्म से सज्जित हो नवाचार,
रवि-रश्मि,अनिल,जल,गगन
से जुड़ते नव कौशल सुविचार।
स्वरचित,अप्रकाशित
@ मीरा भारती
पुणे, महाराष्ट्र।