रंगा सियार की तरह मेरे एक दिवसीय सप्ताहिक उपवास का धारावाहिक बड़े आराम से व्यतीत होता जा रहा था। मुझे अब यह पछतावा हो रहा था कि मैंने शादीशुदा जीवन के इतने दिन बिना उपवास के व्यर्थ क्यों गवां दिए। उपवास प्रदत्त आनंद से मुझ पेटूमति को यह भी समझ में आ गया कि हम भारतीय उपवास से इतना क्यों लगाव रखते हैं। सच बताऊँ, मैं तो आने वाले हर सोमवार के चार दिनों पहले से ही प्रतीक्षा करने लगता था और बार-बार पूछता रहता था कि आज कौन सा दिन है! परन्तु हर अच्छी चीज़ का अंत एक दिन होता ही है। वह दिन आ ही गया। जब एक दिन श्रीमती ने झनझनाते हुए मुझे आड़े हाथों लिया - "सुनो जी आपकी इस साप्ताहिक नौटंकी से मैं । आप सीधे शिवमंदिर जा कर शिवजी से क्षमा मांगे, नारियल भेंट करें और तुरंत बंद करें अपना ये साप्ताहिक उपवास का धारावाहिक।" मैंने आश्चर्य से पूछा “अरे क्यों? मैं तो इसे पिछले कुछ महीनों से बड़े आराम और मज़े से निभा रहा हूँ. मुझे कोई तकलीफ या दिक्कत नहीं है।"
पत्नी जी उखड़ गयीं - "तकलीफ आप को नहीं मुझे हो रही है। प्रत्येक रविवार को आप रटने लगते हैं की कल सोमवार है। इसलिए आज जरा कुछ शक्तिदायी शाही पनीर और गाजर का हलवा बना देना; सादे चावल की जगह शुद्ध घी का काजू मटर पुलाव रात के भोजन में ठीक रहेगा ताकि कल किसी प्रकार की कमजोरी महसूस न हो। उपवास के दिन तो आप हद कर देते हैं। उस दिन सुबह से दूध और फलाहार प्रारंभ हो जाता है कि आज उपवास है, खाना नहीं बाना है। सुबह से रात तक सेंधा नमक युक्त साबूदाना, दूध में पके मखाने, सिंघाडे के आटे का हलवा, राजगीर, शकरकंदी जैसे फलाहारी खाद्य पदार्थ बनाते-बनाते और केला, अमरूद, सेब, नाशपति आदि ऋतु फल परोसते-परोसते मैं तो परेशान हो जाती हूँ। साथ में सब के लिए प्रतिदिन का खाना बनाओ सो अलग। आप का ‘उपवास' तो थोड़ी-थोड़ी देर में 'पेटवास' हो जाता है। आपको उपवास के दिन कुछ काम-धाम तो करना है नहीं है। उपवास के दिन कहेंगे कि दुकान नहीं जाना, आज उपवास है। मंडी कल जाएंगे। खैर, दूसरे दिन मंगलवार को सुबह से आप राग अलापने लगते हैं कि कल दिन भर के 'उपवासे' थे, भूखे-प्यासे व कमज़ोर से महसूस कर रहें हैं, तो आज टंगड़ी कबाब या कम से कम अंडा फ्राय तो हो जाए। क्षमा करें, मुझे आप के एक दिवसीय व्रत के एवज में पाँच दिवसीय टेस्ट क्रिकेट मैच में अब सम्मिलित नहीं होना है।"
पत्नी के आगे किसकी चलती है। सो, धमकीनुमा सलाह मान गया। अच्छा हुआ यह उपवास की नौटंकी बंद हुई। मैंने महसूस किया है कि ज्यादातर रिसेप्शन, पार्टी, जन्मदिन भोज, शादी की सालगिरह आदि के आयोजन ख़ास सोमवार को ही आयोजित हो रहे थे और मुझे पार्टी के लज़ीज़ खाने से उपवास के कारण व्यर्थ में वंचित रहना पड़ता था। अतः मैंने भी उपवास कार्यक्रम वैसे, उपवास के उन स्वर्णिम दिनों को याद कर सोच रहा हूँ कि एक बार फिर किसी एक दिवसीय साप्ताहिक व्रत का धारावाहिक प्रारम्भ क्यों न कर दूँ।
डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’
सरकारी पाठ्य पुस्तक लेखक, तेलंगाना सरकार
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