रवायतों को उखाड़ फेंके चलो
एक रात पर अटकी है
नवयुग की भोर
मिलकर आगाज़ करें चलो
दस्तक देती है
सुहानी सदी इक्कीसवीं
जंक लगी सोच को
दोहराना बंद करें
नारी तन को
मानव की श्रेणी में सजाकर
पूजनीय समझें
पितृसत्ता की महफ़िल को चलो
तख़्लियां कहें
अपनेपन का अनुराग मन में
आविर्भूत करें
जोड़े जो इंसान को इंसान से
ऐसा कोई धागा चुनकर
अखिल विश्व को एक करें
अहं के वृंद को मन से हटाकर
एक दूजे में ईश का दर्शन करें
सतयुग लाना कठिन नहीं गर
मन से महज़ कड़वाहट को कम करें
भावना ठाकर 'भावु' बेंगलोर