से दुश्मनी,ना माधो से बैर रखूं। यह
मेरी अभिलाषा है।
मातृ भूमि पर प्राण न्यौछावर करने वालों पर
अर्पणा रहूं सदा। घर परिवार समाज के लिये
समर्पण का भाव रखूं सदा। रख तर्पण का भाव
पित्रों के प्रति श्रृद्धा और सम्मान रखूं।
बन चेहरों की मुस्कान, फूलों के रंग सा रंग दूं
हर किसी का जहान। बन इत्र हवा को साथ ले
हर किसी का जहां महका दूं। मैं भी फूल जैसा
बन जाऊं।
अकेला फूल महक और खुशी प्रदान करता है।
और समूह में महक और खुशी के साथ अनेकता
के साथ एकता का संदेश बिना बोले ही प्रदान करता
है। ईर्ष्या, द्वेष से परे निश्चल, समर्पित काया बन जाऊं।
है प्रभु,मैं फूल जैसा बन जाऊं।ना उधो से दोस्ती ना
माधो से बैर रखूं। जहां मेरी जरूरत हो वहां मैं काम
आऊं। यह मेरी अभिलाषा है, मैं पुष्प सा बन जाऊं।
मैं पुष्प सा बन जाऊं।
रमा निगम वरिष्ठ साहित्यकार
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