रक्षा कवच तैयार हो कैसे
एक प्रश्न बना है मानव पर।
क्या केवल वैक्सिन ही माध्यम
प्रश्न बना है मानव पर।।
जब संकट के काले बादल से
राह बंद हो आगे का।
दोस्तों का वो कंधे पर हाथ
रक्षा कवच बन जाता फिर मानव का।।
एक थपकी वो प्यार बापू के
और पूछते क्यों हो परेशान।
कहते फिर पगले चिंता क्यों
नाहक तुम क्यों होते परेशान।।
परेशानी छोड़ो बाबू तुम
जाकर करलो तुम आराम।
परेशानी से लडलेगें बापू
तुम्हें नहीं होना परेशान।।
सच मानो फिर कवच रक्षा का
हो जाता फिर ऐसा तैयार।
जो अवेध सा कवच रूप ले
झेल जाता है बज्र प्रहार।।
भाई भाई का सहचर बनना
खड़ा करता एक किला तैयार।
जिसके ऊँची दिवारों से
दुश्मन चित हो जाते अपने आप।।
आँचल छाया की बात करें तो
मातृ छाया है बहुत हीं खास।
ठंडी गर्मी और बरसात में
जो बन जाती छाता आप।।
उस छाया में बहुत सुकून है
जो हर लेती हर पीड़ा आप।
चाहे मन में बहुत बेचैनी
हर लेती है मातृ छाया आप।।
श्री कमलेश झा
नगरपारा भागालपुर
बिहार